शकुन्तला: एक चरित्र चित्रण
शकुन्तला: एक चरित्र चित्रण
कवि कुलगुरु कालिदास प्राचीन भारत के महानतम नाटककार और कवि हैं। वे संस्कृत साहित्य जगत के शिखर और आदर्श हैं। उनके द्वारा रचित नाटक अभिज्ञान शाकुंतलम पूरी दुनिया में पढ़ा और सराहा जाता है। इस नाटक का कथानक आरम्भ से अंत तक शकुंतला नामक एक खूबसूरत ऋषि कन्या के इर्द-गिर्द घूमता रहता है।
शकुन्तला नामक यह किरदार कालिदास की अद्वितीय रचनाओं में से एक है। शकुन्तला ऋषि विश्वामित्र और मेनका की बेटी हैं। वे कण्व ऋषि के आश्रम में उनकी पुत्री के रूप में निवास करती हैं। कालिदास उन्हें सहज शुद्धता, सुंदरता, अनुग्रह, भारतीय नारीत्व, धैर्य और त्याग की प्रतिमूर्ति के रूप में बखूबी प्रस्तुत करने में सफल हुए हैं। शकुन्तला सरल, सुन्दर और मासूम हैं। सीता और सावित्री की तरह ही वे भी एक आदर्श भारतीय महिला हैं।
अभिज्ञान शाकुंतलम में शकुंतला इतनी सुंदर हैं कि पहली नजर में ही दुष्यन्त उन पर मोहित हो जाते हैं और मोहित क्या हो जाते हैं, दिल दे बैठते हैं। वे पेड़ों के पीछे छिप छिपकर उनकी आवाज़ की मिठास का आनंद लेने की भरपूर कोशिश करते हैं। दुष्यन्त शकुंतला की सुंदरता से इस कदर प्रभावित हैं कि वे शकुंतला को पवित्र फूल और अनछुई कली की संज्ञा देते हुए आह भरते हैं और अकस्मात कह उठते हैं: ‘मुझे नहीं पता कि इस दोषरहित स्वैर्गिक सुंदरता का आनंद लेना किसके भाग्य में बदा है ।'
वनकन्या शकुंतला न केवल सुंदर हैं बल्कि वे अति कुशल और तर्कशील भी हैं। वे दृढ शक्ति और अपूर्व धैर्य की भी प्रतिमूर्ति हैं। जब वे राजदरबार में जाती हैं तो नाटक में उनके तर्क कौशल का अपूर्व प्रदर्शन होता है। वे दुष्यन्त को बताती हैं कि वे उनकी धर्मपत्नी हैं और गर्भवती भी हैं। लेकिन लाख तर्कों के बावजूद जब दुष्यन्त फिर भी उन्हें नहीं पहचान पाते तो वे प्रमाण स्वरुप राजा द्वारा दिए गए उपहार वाली अंगूठी दिखाने की कोशिश करती हैं परन्तु दुर्भाग्य से वह अंगूठी काफी खोजने के बाद भी मिलती नहीं। फिर भी शकुंतला हार नहीं मानतीं। वे राजा को अपनी गोद के हिरन के बच्चे को दिखाकर जंगल के सुन्दर दृश्य की याद दिलाती हैं। वे लगातार अपने आप को दुष्यंत की धर्मपत्नी साबित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़तीं। हालाँकि, दुर्वासा के अभिशाप के प्रभाव में दुष्यन्त फिर भी उन्हें नहीं पहचान पाते, लेकिन शकुंतला अपने तर्क, मौखिक कौशल और भावनात्मक अपील के माध्यम से दुष्यंत को चिंता में अवश्य डाल देती हैं। दुष्यन्त द्वारा उनकी पहचान को लगातार नकारने के बावजूद शकुंतला बिल्कुल ही अविचलित और क्रोधित नहीं होती। वे एक भी कठोर शब्द का प्रयोग नहीं करतीं। यह व्यवहार शकुंतला के धैर्य और सहनशीलता की ताकत को बखूबी दर्शा देता है।
प्रकृति शकुंतला के जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती है। वे पूर्णतः प्रकृति की संतान प्रतीत होती हैं। उनका पालन-पोषण प्रकृति की ही गोद में हुआ है। प्रकृति के साथ उनका रिश्ता उनके नाम से ही जाहिर हो जाता है। जब वह जन्म लेती हैं तो उनकी रक्षा और देखभाल शकुंता पक्षी द्वारा की जाती है। वे प्रकृति की तरह ही कोमल भी हैं और प्यारी भी । दुष्यंत द्वारा पहचान लिए जाने के बाद जब वे अपनी ससुराल के लिए प्रस्थान करतीं हैं तो उनके वियोग से पूरा आश्रम दुखी हो जाता है। हिरण घास चरना छोड़ देते हैं और मोर तो नाचना ही बंद कर देते हैं।
कालिदास ने अभिज्ञान शाकुंतलम में एक समर्पित पत्नी का हृदयस्पर्शी चित्र प्रस्तुत किया है। शकुंतला अपने पति दुष्यंत के विरह में लगातार तड़पने के वावजूद संयम की प्रतिमूर्ति बनी रहती हैं। यद्यपि वह एक अप्सरा की पुत्री हैं, पुत्री क्या स्वयं में अप्सरा हैं, इसके वावजूद अपने पति के अतिरिक्त किसी अन्य के लिए उनके ह्रदय में बिलकुल कोई स्थान नहीं है। निःसंदेह वे एक आदर्श भारतीय पत्नी हैं।
संक्षिप्त में, अभिज्ञान शाकुंतलम की नायिका शकुन्तला निःसंदेह कालिदास की एक अद्भुत एवं अन्यतम रचना है। कालिदास का यह किरदार आदर्श की प्रतिमूर्ति है और इस किरदार की असली ताकत उसकी गहरी और शक्तिशाली संवेदनाएं हैं।
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